Wednesday, March 12, 2014

Papa

Re posted: because I know, he must have cried today.

पिताजी की बात बेबात पर रोने की आदत है.  माँ कहती है की तुम्हारी चर्चा हो तो emotional हो जाते हैं, इसलिए रोते हैं. मैं कहता हूँ की ख़ुशी के मौके पर भी कोई इस तरह रोता है क्या ?

छुट्टियों में घर आया था और शाम को परिवार की मंडली जमी थी.
“लोग पूछते हैं कि, बेटा बाहर कमाता है, कुछ चुपका पैसा तुम को भी भेजता होगा?” मौका पाकर माँ मेरी टांग खीच रही थी.
“जब में पढाई कर रहा था तो सारा खर्चा पापाजी ही दिया करते थे. तुमने तो कभी चुपका 10 रुपया भी pocket money नहीं दिया.”
सब हँस रहे थे और पापा आंसू पोछ रहे थे.

चाहे उन्होंने मेरे IIT में qualify करने की खबर सुनी हो या graduation convocation के बाद मैंने उनके पैर लगे हों या फिर किसी ने चाय पर मेरी बड़ाई कर दी हो, वो हर बार रोये हैं.

उन्होंने कभी मुझे गले से नहीं लगाया. कभी मुझसे नहीं कहा की “तुम पर नाज है”. माँ तो हर बार लम्बी सी झप्पी देती है. फिर पापा क्यों नहीं? माँ कहती है उनको प्यार जताने का बस यही तरीका आता है.

"Good afternoon passengers. This is the pre-boarding announcement for flight 217A to Melbourne. Please have your boarding pass and identification ready. Regular boarding will begin in approximately five minutes time. Thank you."

Announcement ख़त्म होने तक पापा उलटी दिशा में मुड़ चुके थे. मैंने backpack कंधे पर डाला और मम्मी के पैर छूआ. सीधे होते ही मम्मी ने बड़ी सी झप्पी दी, और पापा जी को खीच कर मेरे पास लायी. आँखों से बड़े - बड़े आंसू बिना आवाज के ढलक रहे थे. कोई इतने भी आंसू बहता है क्या?

Wednesday, February 12, 2014

Vimla Mausi

सामान शिफ्ट करते, शाम के 4 बज गए. नये मकान की लोकेशन अच्छी है. बस पांच मिनट पैदल स्टेशन है.
"खीर बना रही हूँ, खा कर ही मार्केट जाना." कहकर उमा kitchen में घुस गयी.
"थोडा ज्यादा खीर बनाना. कुछ पड़ोसियों में भी बाँट आयेंगे. इसी बहाने पहचान भी हो जाएगी." मैंने जोर से कहा.
"अरे बाबा kitchen में ही हूँ चाँद पर थोड़े ही ना गयी हूँ जो इतना चिल्ला रहे हो. " उसने kitchen से झांकते हुए मुस्कुरा कर कहा. इस कांग्रेस की सरकार में, उसकी मुस्कुराहट की ही तो price अब तक नहीं बढ़ी. 

पड़ोसियों से शाम की वार्तालाप के बाद एक बात तो समझ में आ गई थी कि सामने वाली विमला मौसी काफी famous हैं.  कारण कोई बताने को तैयार नहीं था, सब बस कह रहे थे कि कुछ दिनों में आप खुद समझ जाइएगा.

सवेरे नींद खुली तो पता चला कि सामने वाली विमला मौसी ने आसमान सर पर उठा रखा है. किसी ने motorcycle रात में उनके फाटक के सामने पार्क कर दिया था.  चाय पीते हुए मैंने उमा को कहा कि जिसकी भी bike है, वो तो गया काम से. उमा ने खिड़की से बाहर झांकते हुए कहा कि "लग तो अपनी ही रही है".
मैंने चाय का प्याला जल्दी से नीचे रखा और तेज क़दमों से बाहर निकल गया.
"मौसी वो कल जल्दबाजी में गलती हो गयी." bike अपने campus में करते हुए मैंने कहा. बदकिस्मती से reverse करते वक्त motorcycle ने पास बंधी गाय को ठोकर मार दिया. बस फिर क्या था, मनो मौसी की पूँछ में आग लगा गयी हो. मौसी ने मेरे और उमा के सात पुश्तों को कोस डाला. सारे पडोसी बाहर खड़े होकर आनंद ले रहे थे. 
"अब समझ आया कि विमला मौसी क्यों famous हैं. बहुत दिनों बाद दुबारा ऐसी गलियाँ सुनने का मौका लगा." मैंने उमा से मुस्कुरा कर कहा. उधर मौसी जी अभी भी सुवचन बाँट रही थीं.

कुछ ही दिनों में हम मौसी को अच्छी तरह जान गए. विमला मौसी जब पूरे रंग में आती हैं तो आपको अपने सारे भूले-बिछड़े रिश्तेदार की याद दिला देती हैं. उन्होंने तो चंद दिनों में मेरे उन पूर्वजों को भी अपने सुभाशीष से खंगाल डाला था जो बन्दर रहे होंगे. विमला मौसी ऐसे काफी innovative हैं गालियों के मामले में. धाराप्रवाह एक से बढ कर एक गलियाँ देती हैं. कल जब वो पूरे फॉर्म में शर्मा जी पर बरस रही थीं तो मुझे अपनी हिंदी grammar की "संधि" (combining sounds) की classes याद आ गयी. सिर्फ एक शब्द से संधि कराकर मौसी ने अनगिनत शब्द बना डाले थे.
शर्मा जी बता रहे थे की मौसी को Low blood pressure है. मैंने भगवन का लाख-लाख शुक्रियादा किया कि अपनी किस्मत अच्छी है जो मौसी को High blood pressure नहीं है. वर्ना मौसी न जाने क्या-क्या करती? यूँ तो मौसी बुरे दिनों में झाड़-पात से भी झगडा खोट लेती हैं, पर ऐसा मौका मोहल्ले वालों ने दिया नहीं या यूँ कहें मौसी ने ऐसा मौका आने नहीं दिया.
यूँ सोचिये तो इसमें केवल बुराई ही नहीं है. जब मौसी कल सुभाशीष दे रही थीं तो उमा को याद आया कि उसने बहुत दिनों से अपने पापा से बात नहीं की है.  मौसी ने उसे उसके पापा लगाकर कोई गाली दी थी. मेरी माँ कहती है कि जो लोग बोल देते हैं, उनका मन साफ होता है. मौसी का दिल भी साफ था. कभी भी कोई मदद की जरूरत हो तो मौसी कभी मना नहीं करती थी. ये बात अलग है की अगले ही झगडे के मौके पर पूरी कालोनी वालों के सामने उलहना दे देती थीं.

रात को खाने पर उमा ने चर्चा छेड़ा कि ऐसे माहौल का बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा. कोई नया मकान जल्द  ही ढूंढना पड़ेगा. मैंने उसे समझाया कि ऐसे भी बच्चे अभी छोटे हैं और दो चार गलियाँ सीख भी लें तो कोई बुराई नहीं है. यह भी हमारे culture का एक हिस्सा है जो शहरीकरण के साथ नष्ट होता जा रहा है.  ऐसे भी कब तक समस्याओं से भागते फिरेंगे, कोई ना कोई समस्या तो हरेक जगह होगी. मैं लोकेशन की वजह से मकान change  नहीं करना चाह रहा था.  
"एक समाधान है मेरे दिमाग में. बस तुम्हारी मंजूरी चाहिए." मैंने उमा से नजरें चुराते हुए कहा. "लोहे को लोहा ही काट सकता है." मैं इशारों में ही उसे समझाना चाह रहा था. 
 "मैं समझी नहीं." ......"Ohh NOO!!!..कहीं आप ..?"
"OHH Yess.." 
उसने मुस्कुराते हुए स्वीकृति में हामी भरी और मैं मोबाइल लेकर कॉल लगाने बाहर चला आया.

शाम को दरवाजे पर ही पता चल गया की नानी आ चुकी है. अन्दर वह उमा पर बरस रही थीं. मैंने नानी के पाँव छूए और नाना का हाल चाल पूछा. फिर मैंने बच्चों को नानी को आसपास दिखा लाने को कहा. मैंने नजरों से ही उमा को समझाया कि बस थोड़े ही दिनों की बात है.
बात कुछ ऐसी है कि मेरी नानी दिन में जब तक किसी से झगडा ना कर लें तो उनका खाना नहीं पचता. इसी कारण मैंने कल नानी को call लगाया था. विमला मौसी की काबिलियत देखकर मुझे लगा कि कोई उन्हें टक्कर दे सकता है तो वो मेरी नानी ही है. दो शेर आमने सामने हों तो टक्कर पक्की है, बस अब मुझे इन्तजार करना था. रात को मैंने अपनी motorcycle विमला मौसी के फाटक के सामने पार्क कर दी और सोने चला आया. बस इन्तजार सुबह होने का था.

उमा ने मुझे झकझोर कर जगाया. बाहर बहुत शोर मचा हुआ था. उमा ने बताया की सवेरे नानी टहलने निकली हुई थीं और जब वापस आयीं तो विमला मौसी आप को गलियाँ दे रही थीं. बस फिर क्या था, दोनों तभी से जमे पड़े हैं. 
"जल्दी फ्रेश हो लीजिये नहीं तो आप miss कर जायेंगे. मैंने चाय टेबल पर रख दिया है और में बाहर जा रही हूँ."
"ठीक है, पर तुम बाहर मत निकलना. मैं नहीं चाहता कि तुम कुछ बोलकर नानी का पलड़ा हल्का कर दो."
दो घंटे तक चली लड़ाई का मैंने भरपूर आनंद लिया. मन ही मन सोचा चलो आज parliament session नहीं भी देखूँगा तो काम चलेगा. विमला मौसी, नानी के उम्र और तजुर्बे से मात खा गयी थीं. सब शांत हो जाने के बाद मैं शान से motorcycle लेकर बाजार निकल गया. 

पिछले दो दिनों से मोहल्ले में शांति है. शाम को आया तो पता चला कि नानी मौसी के घर पर हैं. मौसी खुद बुलाने आयी थीं. मैंने कहा कि ये भी सही है, आखिर कितने दिन पडोसी से झगडा रख सकते हैं.

उमा ने मुझे झकझोर कर जगाया. बाहर बहुत शोर मचा हुआ था. मैंने पूछा कि अब क्या हुआ? उसने हँसते हुए कहा कि आप खुद देख लीजिये. बाहर भीड़ जमी थी. विमला मौसी और मेरी नानी मिलकर शर्मा जी को उनके खानदान की याद दिला रही थीं. मैंने मन ही मन कहा की चोर चोर आखिर मौसेरे भाई ही होते हैं. शर्मा जी की तो दूर दूर तक मुझे खैरियत नजर नहीं आ रही थी. शाम को ही मैंने नानी का सामान बंधा और वापस भेज दिया. विमला मौसी स्टेशन तक छोड़ने आई थी.

Sunday, January 12, 2014

Bhookh

While browsing blogs, I came across this very lovely poem by Parul ( see her blog in the "Blog list" Rhythm of words ....) and I could not resist myself from posting it on my blog with her due permission. Post is called "Bhookh".

Monday, January 6, 2014

Idea about AAP

You are not the real candidate, the real candidate is the idea.

Transformation of AAP  from the margins of civil society movement into a successful political party has been nothing short of a fairy tale. Almost a month has passed since they formed government with outside support of Congress – the party whom they criticized unrelentingly – and throughout the period they have been put to scrutiny by critics and followers alike. They have been point of discussions not only  in premier television shows but also among otherwise politically less active netizens.

In this write up I will try to analyze the idea of AAP. I have the used the word “idea” because I want to discuss it from the idealistic  point of view. Realistic factual abberations, like Binny’s revolt or vigilantism of Bharti will be overlooked.

Lack of alternative:

Success of AAP does not emanate from personality cult, but it is rooted in failure of existing apathetic, corrupt and manipulative political system which is unable to meet peoples rising expectations. As people become literate and aware of comparative realities, the demand for better governance is inevitable. However, in absence of alternative political paradigm, either people had turned apolitical (educated middle class) or kept on voting on issues which have not changed (rather, degenerated further into factionalism) since Indira Gandhi introduced populism in India.

Limitations of civil society movement:

In absence of alternatives, various civil society groups took up the issue of good governance on various forum (judiciary, right to information, protest, petitions etc.) which produced some desirable changes. However, these changes have been too slow rather than paradigmatic in nature. The inertia of existing political elites have been too much to overcome by reformative measures alone. The ones who can make changes are the one’s with the vested interest. In such case, any quality outcome from parliament was too much to expect.

The apathy of government to engage with civil society (unless their political clout is at stake) and even use of propaganda and force to suppress such movements have been detrimental to morality of civil society movements. It is unfortunate that the first response of state against the protesters (Delhi Gang Rape case, POSCO case, Kudankulam Nuclear plant)  has been invariably use of police or shutdown the transport system. Discrediting activism either by saying they are foreign funded or anti-nationalist, narrows the room for dissent in democracy. Limitations of reformative civil movements were never more so apparent, when shamelessly politicians asked anti-corruption activists to challenge current system either by joining politics or watch helplessly the anarchy.

The Idea of AAP:

AAP stands for wish of people to be governed better, idea of change, idea of people’s supremacy,  and demoralizing immorality in existing political system. It stands for courage of civil society to challenge apathetic state and synchronizing it with ground realities. The success of AAP has already forced political parties to change their approach. If nothing else, atleast it spooked them to pass Lokpal Bill (after 40+ years). It is rightly said monopoly leads to inefficiency and corruption. Alternative that AAP presents, also rekindles the faith that civil society can and will take courageous steps to correct aberrations in state. Politicians need to realize that democracy is not government by politicians, rather by people and for the people.

The reality can never be ideal. AAP has long way to go to achieve the idea. However, it keeps my faith in democracy and civil society alive. It gives me courage to be idealistic. After all, AAP is not the candidate, it is the idea which is the real candidate.

Thursday, August 22, 2013

2 Crows

Once a house was on fire and everybody was trying their best to put out the fire. One crow (First Crow) was watching the whole process from a distance. He saw a crow (Second Crow) flying back and forth between the burning house and a well, and trying to put out the fire with whatever water he could hold in his beak. The idea amused the First Crow. Once the fire was extinguished, Second Crow flew back to his nest next to First Crow’s.
First Crow asked Second Crow, “You know it wasn’t making any difference. Why you were wasting your energy?”
Second Crow replied, “At least when somebody will write this story, I will not be the one who was sitting while somebody’s house was burning.”

It is easy to be the first crow, but it needs courage to be the second; Keep trying even when you feel it is not going to make any difference.

Thursday, August 15, 2013

Yeh Jo Desh Hai Tera

Today I had a long discussion with my roommate about various aspects of Indian administration and responsibility of people in democracy. Somehow our discussion drifted towards better governance in developed nations and why it does not works for India.

It started with why Indians hide tax. He was saying that people are not doing anything unreasonable by not returning tax as he can’t see any change happening to India. His father regularly pays tax and still road in front of his house has pits. There water shortage, sewage problem, electricity problem and many more which he reminded me. His point was fair but we need to see other facet of it. Tax is one of the ways by which government raises fund for development. Majority of people do not pay tax and feel proud about it. The problem is, for every small problem we curse government. Either it is a pile of garbage on the road or electricity cut, straight away we put onus on government. A close observation will reveal that for many of the problems simply we as a civilian of nation are responsible. Even if there is a specified place for garbage, people tend to throw stuff everywhere where ever they like. People are very happy to steal electricity but when there is a cut they will make hue and cry. If we introspect candidly ourselves then you will find, all of us never miss an opportunity to pay a small bribe for bigger legitimate amount which can help Government. In our day today life we misuse so much of electricity and water. We have to realize that with our growing population and living standard unless we do our duty honestly (utilizing resources wisely) it is going to pile up pressure on our Government. I have seen teachers recruited in Government school shy away from their duty. They either not conduct classes or not try to give their best in the class. Most of the development schemes fail because people involved were not performing up to their expectation. Take the case of IITians. Government subsidizes our studies. It invests so much in institution and what many alumni like me is doing? I was working in Australia; paying tax over there and helping it grow. It is simply lack of responsibility. A little effort (tendency) to help Government could make a drastic change in India’s situation.

Our system is infested with corruption and bribery. It is us who take or perpetuate bribery. Even if we are giving bribery, we are basically facilitating the corrupt system. Politicians are laundering money but we are the one who choose then in the first place. If we feel something is not right then why do we not raise voice? When we will stand up and be countable? If we feel politics is filled with corrupt people then why can not we raise a group of clean politicians? It is we who have made India this way and nobody else and we should take full responsibility of it. A country is made by its citizens and unless their citizens care about the country, how it is going to change. Everybody thinks that it does not matter whether he does his responsibility properly or not, as he is just a person. The problem is that everybody (close to 95%) thinks like that. Nobody is going to clean our closet unless we do it ourselves.  So do not think that any of us is less guilty. If you can not do anything, at least not add to India’s problem.

I would like to refer movie “Swadesh”. How well and aptly leading actress says that it is not only Government responsible for India’s growth, every citizen has also a part to play. We are not different from Government. We are Government.

I have seen a positive vibe in the horizon. Many young people (especially many IITians) are thinking about the country. Media has become responsible and judiciary has done some excellent work. I can say this is the beginning and it will take decades to recover properly. Contribute as much as you can. Always remember, “A country is as good as its citizen”.

And he said, it all sounds good, but it is not reality. It may be hard to achieve, but if we all share the same dream then I see no reason that why it can not be achieved. Join politics, public administration or whatever you do, make our dream a reality. Are you with me?

Saturday, July 20, 2013

Silver Lining

Yesterday I saw my first silver hair and I thought may be I am getting old. There it was, standing conspicuous like wise man among normal mortals. I checked it again and again hoping it to be illegal immigrant, but it was 100% indigenous.

Soon I will have trouble with walking and remembering things. But I still remember you after all you were my first love. May be someone told your name yesterday at the pub, but I can not remember it now. But I still remember your smile, your smell and your first touch. May be we went on a date and I am sure it would have been very nice. Thanks for being so kind to me and I hope I will remember your name again.

“Hey Anand, what are you smiling at? It is getting dark. Let us go home.” She was almost standing.

“I just remembered my first love. I think I was in senior secondary school and she used to sit on the first bench.”

“But didn’t you study in a boy school?”